tag:blogger.com,1999:blog-6099332111233375113.post2472602767403986219..comments2023-05-25T01:33:21.162-07:00Comments on अस्तित्व: भूख जगाता बाजारAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/05392030919758226718noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-6099332111233375113.post-52719384000920553772010-05-03T02:31:44.575-07:002010-05-03T02:31:44.575-07:00बाजार ने सपनों के चमकीले साँप हर घर में छोड़ दिए ह...बाजार ने सपनों के चमकीले साँप हर घर में छोड़ दिए हैं.... उससे कोई बचाव, कोई सुरक्षा न तो सरकारों के बस में है और न ही कथित संस्कृति के बस में..... हम बस इस ‘भूख’ के प्रवाह में डूब रहे हैं..... बचाव कुछ नहीं.... है, डूबना ही नियति है.... टू गुड....डॉ. राजेश नीरवhttp://www.blogger.com/profile/03985056503029264578noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6099332111233375113.post-56697543991463825762010-05-02T05:51:36.108-07:002010-05-02T05:51:36.108-07:00मर्मिक रचना।विकट समस्याओं का आसान हल ढूँढ निकालना...मर्मिक रचना।<br>विकट समस्याओं का आसान हल ढूँढ निकालना सबसे मुश्किल काम है।मनोज कुमारhttp://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.com