Thursday, 28 February 2013

....और एक मलाल



फिर एक साल
और
एक मलाल
बढ़ती जाती है
फेहरिस्त
उम्र की तरह
...............
क्या छूटा है
करने, सीखने,
जानने, जीने से
कैसे कम होंगे ये मलाल
..............................
फिर जन्म लेना चाहूँगी
इन्हीं मलालों के साथ
ताकि दूर कर सकूँ
शिकायतें जो
खुद से हैं
........................
लेकिन जब तक
ये नहीं होता
तब तक
फिर एक साल
और एक मलाल

Monday, 11 February 2013

ख्वाहिशों के 'स्पंज'-सी छुट्टी


एक शाम पहले ही टपकने लगती है
बूँदें...
'साथ' रहने की, खुद के करीब बैठ
जाने की...
मॉल में घूमने की, 'बीहड़' में भटक
जाने की...
थोड़ा-सा पढ़ने और बहुत कुछ को 'बना'
लेने की...
कुछ 'अच्छा' सुनने और फिर उसमें
डूब जाने की...
इकट्ठा होती रहती हैं ख्वाहिशें...
ख्वाहिशें... ख्वाहिशें...
शाम होते-होते बहुत कुछ होता है,
पूरी ताकत से निचोड़ लिया जाता है
छुट्टी का स्पंज...

फिर भी रह जाता है, बहुत कुछ
बचा... रह जाती है प्यास, जो
इंतजार करती है अगली छुटटी का

...और यूँ ही चलता रहता है प्यास और आस
का सफर...इसी तरह छुट्टी-दर-छुट्टी...