यूँ ये मेरा माध्यम नहीं है...ना छंद की समझ है और ना ही मात्राओं की....। पुरानी डायरी के किसी पन्ने में एकाध निराश से क्षण की तरह कभी कोई कविता मिल सकती है, इससे ज्यादा इस दिशा में मैंने कभी कोई हिमाकत नहीं की। और आज भी इसे कविता कहने की हिमाकत नहीं कर सकती, यह मात्र तुकबंदी है जो रात के अचेतन पहर में कड़ी दर कड़ी जुड़ती गई।
रात के बिल्कुल बीचोंबीच जब बारिश की बड़ी-बड़ी और लगातार गिरती बूँदों की आवाज से नींद खुली तो दिमाग का सारा कूड़ा सतह पर आ जमा हुआ....बहुत देर तक जोर से आँखें मींचे बारिश के होने को नकारते रहे, उस संगीत की तरफ से कान भी बंद कर रखे....जो शायद दुनिया की पहली कंपोजिशन में से एक रहा होगा और आज भी उतनी ही ताजातरीन, दिलकश और शुद्ध है जितना पहले था....लेकिन शायद इसे ही प्रेम कहते हैं कि ज्यादा देर उसकी पुकार को अनसुना नहीं कर सके और बाहर निकल ही आए...। आसमान जैसे फट पड़ने को आतुर था..... लाल-धूसर बादलों का जमावड़ा...गहरे अँधेरे में बूँदों का गिरना तो नहीं दिख रहा था, लेकिन फुहारें सहला रही थी....नींद चाले चढ़ चुकी थी और उस कूड़े में से कुछ काम की चीजें निकलने लगी थी। कुछ विचार और कुछ भावनाएँ उभर आई थी....। पता नहीं कहाँ से ये तुकबंदी निकल पड़ी।
बेटियाँ
ना जाने कहाँ से आ जाती हैं ये
कुछ ना हो फिर भी खिलखिलाती हैं बेटियाँ
ना प्यार की गर्मी और ना चाहत की शीतलता
फिर भी जीती जाती हैं बेटियाँ
अभावों और दबावों के बीच भी
दिन के दोगुने वेग से बढ़ती जाती है बेटियाँ
भीड़ भरे मेले में हाथ छूट जाए
फिर भी किसी तरह घर पहुँच जाती हैं बेटियाँ
खुद को जलाकर भी
घरों को रोशन करती जाती हैं बेटियाँ
सीमाओं के आरपार खुद को फैलाकर
पुल बन जाती हैं बेटियाँ
शायद इसकी सजा पाते हुए
कोख में ही मारी जाती हैं बेटियाँ.....।
आपकी इस हिमाकत पर दाद देते हैं
ReplyDeleteआप अच्छा लिख लेती हैं, हम यह विश्वास देते हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कविता बेहतर है । आपकी जबान में तुकबंदी । पर उसका क्या जिसे आप फर्स्ट कम्पोजीशन कह रही हैं ? तुकबंदी ही न! पर किसी भी कविता (?) से कमतर ?
ReplyDeleteकविता निराश-से क्षणों-सी कोई चीज नहीं, और न ही निराशा के क्षणों की कोई चीज है, अपितु निराशा के भीतर छुपी हुई आशा की अनन्त संभावनायें प्रकारांतर से कविता में ही जन्म लेती हैं । हम समझते हैं ऐसा । शेष आपका ...
वाकई आपने जीवन के सच को बहुत ही यथार्थ के साथ व्यक्त करी है ............सुन्दर
ReplyDeleteBAHUT KHUB :
ReplyDeleteJITI JATI H BETIYA
RAMESH SACHDEVA
u r saying this 'tukbandi..' but this is the reality faced by every 'beti', it comes from bottam of ur heart and definetely...a gud thought...we must think...
ReplyDeletemarmik kavita.......mubarak
ReplyDeleteNairashya se utpanna ein panktiyon ko kavita ka naam diya jaa sakta hai.
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