Tuesday, 1 December 2009

तस्वीर-सा सुंदर गोवा...


समंदर के साथ ही दिन-रात, सुबह-शाम हर एक पल बिताने की योजना बनाकर हम गोवा घूमने निकले थे, लेकिन दो दिन हमने मडगाँव (जहाँ हमने ट्रेन छोड़ी) में ही बिता दिए। मडगाँव गोवा का दूसरा सबसे बड़ा शहर....लेकिन ये क्या.....मडगाँव तो देश के किसी भी शहर-सा एक आम-सा शहर है, यहाँ 'गोवा' जैसा कुछ भी नज़र नहीं आया। गोवा का नक्शा खरीदने के लिए दुकान पर पहुँचे तो जैसा कि आमतौर पर होता है पूछ बैठे कौन-सा 'बीच' अच्छा है....जवाब मिला पलोलेम....सोच लिया जाकर एक बार देख लें....फिर सोचेगें....।
इस बीच गोवा टूरिज्म के टूरिंग पैकेज के तहत साउथ गोवा का टूर किया जो बेहद निराशाजनक रहा...आखिर किसी भी जगह को खाने नहीं आए हैं....घूमने, जीने और महसूस करने आए हैं। टूर में कोलवा और मीरामार बीच को मात्र स्पर्श किया और लग गया कि उस दो किलोमीटर लंबे बीच से अच्छे नहीं है बड़े-बड़े बीच तो अगले ही दिन पहुँच गए पलोलेम बीच.....।
कुछ गोवा प्रदेश
गोवा का इम्प्रेशन.... काजू फैनी....नारियल...और उन्मुक्त जीवन से ज्यादा नहीं आता है, लेकिन यह सिर्फ इतनी ही नहीं है। गोवा पर जैसे प्रकृति ने प्रेम की बारिश की है....जहाँ देखो वहाँ हरियाली.....नारियल....कटहल....नीलगिरी....और हाँ सागौन....लाल मिट्टी के बीच हरे पत्तों से सजे लैंडस्कैप में यदि कुछ कम हो सकता था तो वह थे पहाड़....लेकिन यहाँ तो वह भी है। गोवा के बिग फुट म्यूजियम में परशुराम की एक झाँकी बनी हुई है। गाइड ने बताया कि यहाँ माना जाता है कि सह्याद्रि पर्वत से परशुराम ने अरब सागर में जो तीर चलाया था उससे जो जमीन निकली उस पर गोवा और केरल बसा हुआ है। माइथोलॉजी पर हमेशा से संदेह रहा है क्योंकि हम उसे इतिहास नहीं मान पाते हैं, फिर भी गोवा को देखकर तो यही लगता है कि परशुराम के तीर से निकली जमीन ही हो सकता है गोवा....हर तरफ पेड़ ही पेड़.....घरों की छत को भी पेड़ों के बीच ही ढूँढना पड़ता है। पूर्व की तरफ सह्याद्रि पर्वत शृंखला और पश्चिम की तरफ अरब सागर का विस्तार और दोनों के बीच बसा गोवा....अद्भुत....शब्दातीत सुंदर....।



सौंदर्य का साकार रूप : पलोलेम बीच
मुम्बई में जूहू और दमन के बीचेस को देखने के बाद निष्कर्ष ये निकाला था कि बीच पर सिर्फ पानी होता है.....नज़रों की सीमा तक...पानी ही पानी....हरहराता हुआ पानी...लहरों पर लहरें और लहरें....लहरें.....लहरें और बस लहरें......लहरों की हवाओं के साथ जुगलबंदी कुल मिलाकर सी.....सैंड.....और सन.....लेकिन यहाँ एक और चीज जुड़ी....और वह है नारियल के पेड़....पेड़ न कहो....जंगल....और सजगता इतनी कि चाहे रिसोर्ट बना हो या फिर रेस्टोरेंट.....यदि नारियल का पेड़ है तो उसके आसपास निर्माण होगा....पेड़ किसी भी सूरत में कटेगा नहीं....बस इसी एक सजगता ने पलोलेम बीच को सुंदर तस्वीर-सा सुंदर बनाया हुआ है। पूर्व की तरफ नारियल का घना बाग-सा.....और उसके बीच बनी अस्थायी मचान-सी 'हट'...पश्चिम की तरफ जलतरंग बजाता समंदर.....उसमें उभरे छोटे-छोटे टापू....जहाँ नज़र दौड़ाओ....वहाँ प्रकृति मुस्कुराती हुई हमें अभिभूत करती है....यहाँ आकर एक बार फिर से अहसास होता है कि सौंदर्य प्रकृति से बाहर हो ही नहीं सकता है। शायद इसी वजह से यहाँ आकर हर कोई उन्मुक्त हो जाता है....खुद के करीब और दुनिया से दूर होता चला जाता है।


क्रमश:

2 comments:

  1. बढ़ियां.....आगे ज़ल्दी लिखिये....

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  2. अच्छा वृतांत और बढ़िया चित्र.

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