यूँ इसका पता तो तीन महीने पहले से ही हो गया था लेकिन उस शाम जब दफ्तर में घड़ी की टिकटिक के साथ हम कदमताल कर रहे थे और उसकी सुई को थामे रखने की एक बेकार सी कोशिश कर रहे थे....तभी मोबाइल फोन की रूनझुन ने किसी का मैसेज आने का संदेशा दिया...हरदम कंपनी के ही मैसेज देखने और उन्हें तुरंत डिलीट करने के चक्कर में हमने तुरंत ही फोन लपका और रीड मैसेज के ऑप्शन को आदतन यस कर दिया......मैसेज था....कहानी पढ़ी पसंद आई...कांग्रेट्स...जौकी.....। काम वहीं रूक गया मैसेज फिर से पढ़ा.....फिर-फिर पढ़ा.....। खुद को संयत किया....और लग गए काम पर।
एक और शनिवार की बेकार सी छुट्टी..... मम्मी के घर....अननोन नंबर के कॉल के लिए जसराज जी की सरगम बजी....राँग नंबर कहने की गरज से उठाया तो फोन मुरैना का था....संदेश था कि आपकी कहानी मौत की हमें बहुत पसंद आई और आज हमने इसका पाठ किया....वातावरण निर्माण गजब का था आपको बधाई.....मन में और....व अच्छा काम करने का उत्साह जागा....। तो संदेश तो बस इतना ही है कि जून के पाखी के अंक में मेरी पहली कहानी प्रकाशित हुई और इस पर सबसे अच्छा कमेंट मेरी 70 साला ताई मेरी मानस माँ ने दिया....तीन पन्ने की कहानी को कुछ समझते और कुछ ना समझते हुए भी पुरे धैर्य से पढ़ा फिर बहुत प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा-- बेटा ! तूने ये सब कहाँ से सीखा?
खुद के भटकाव को दिशा मिलने की खुशी मात्र है जिसे मैं आप सबसे बाँटना चाह रही हूँ.....रूटिन से विचार और विचार से सृजन की ओर बढ़े पहले कदम के लिए दुआओं की आस के साथ.....।
अमिता जी हमर दिल होता ही येसा है जिस तरह एक मान को अपने बच्चे से प्यार होता है ठीक
ReplyDeleteउसी तरह या उससे भी ज्यादा एक लेखक को अपने साहित्य से प्रेम होता है हम आप की भावनाओ की कद्र करते है
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
atyant bhaavpoorna
ReplyDeleteatyant komal abhivyakti
badhai!
बहत बढ़िया अभिव्यक्ति . .
ReplyDeleteआपकी पोस्ट चर्चा समयचक्र में
अभिव्यक्त होने की अभिव्यक्ति आपने बहुत अच्छे ढंग से की है.
ReplyDeleteकहानी के लिए हमारी भी बधाई...मुरैना नाम देखकर चौंका..चूंकि मैं भी मुरैना से ही हूं :)
ReplyDeleteदुआयें तो आपके साथ हैं.
ReplyDeletewell begin is half done
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