आसमान बेईमान हो चुका है। पूरे देश से दिल दहलाने वाली खबरें आ रही है। धरती रूखी-सूखी और पपड़ाने लगी है। कहा जा रहा है कि यह इस सदी का सबसे बड़ा सूखा है। मौसम विभाग हमेशा की तरह ही असमंजस में रहा और उसने उसी की रचना की। पहले कहा मानसून समय से पहले है और अच्छा है.. फिर बंगाल की खाड़ी से आए तूफान ने बादलों की दिशा बदल दी तब कहा कि देर से है, लेकिन दुरूस्त है। फिर कहा कि औसत से सात फीसद कम होगी बारिश...फिर कहा कि 17 और अब जो आँकड़े आ रहे हैं, वे हमें साल भर के लिए दहशत में डालने के लिए काफी हैं। औसत से 37 फीसद कम बारिश से खरीफ की 50 प्रतिशत फसल को नुकसान....लेकिन इसी दरम्यान अमेरिकी मौसम विभाग ने कह दिया था कि ला-नीनो इस साल सक्रिय है और उसका असर एशिया में होगा और भारत में इस बार मानसून दगा दे सकता है, लेकिन हर बार की तरह ही इस बार भी हमने मानसून पर भरोसा किया (हम कुछ और कर भी नहीं सकते हैं) और वही हुआ जो नहीं होना चाहिए था। इस बीच
पैमाने में छूटने जैसा पानी भी बरसा...और हमारे पास उससे खुश होने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं बचा।
दरअसल अब समय आया है, मंदी से निबटने के चुस्त उपाय करने का। फिलहाल हमारे सामने मंदी का जो भी भूत खड़ा है वह आयातित व्यवस्था की डमी है। 59 सालों से योजनाओं के माध्यम से विकास करने की कोशिश करते देश में आज भी उद्योगों का अस्तित्व अर्थव्यवस्था को वैसे प्रभावित नहीं करता, जितना मानसून...क्योंकि चाहे कृषि पर निर्भरता का आँकड़ा 75 से खिसक कर 60 प्रतिशत पर आ गया है, फिर भी देश की 60 प्रतिशत जनता की क्रयशक्ति देश की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करती है। जितना अर्थशास्त्र पढ़ा है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था का मूलाधार कुल माँग है। और माँग के मूल में है क्रय शक्ति....। यदि देश की 60 प्रतिशत जनता के पास क्रयशक्ति नहीं है तो फिर माँग कहाँ से बनेगी? और यदि माँग ही नहीं बनेगी तो फिर उत्पादन का क्या होगा?
भारत के आर्थिक इतिहास को उठा कर देख लें..... जब कभी मानसून अच्छा होता है, खरीफ के बाद दीपावली की रौनक देखने के काबिल होती है। बाजार रोशन होते हैं और किसानों के घरों में सामानों की भरमार होती है। तो अब जबकि खऱीफ की फसल निकालने जैसा ही पानी नहीं गिरा हो तो फिर अगले पूरे साल के लिए बाजारों में मंदी का ही आलम रहेगा। चाहे जर्मनी और फ्रांस से मंदी के उबरने जैसी उत्साहजनक खबरें आ रही हो....लेकिन हमारे देश में मंदी का चक्र अब शुरू होगा....क्योंकि हमारे किसान यदि खुश नहीं है तो फिर पूरा देश कैसे खुश हो सकता है? अभी तो हम अर्थव्यवस्था की ही बात कर रहे हैं, खाद्यान्न संकट पर तो सोचना शुरू ही नहीं किया है, मंदी ने इस विश्वव्यापी प्रश्न को फिलहाल तो हाशिए पर पटक दिया, लेकिन जल्दी ही हमें इस पर भी विचार करना होगा, ये मामला अर्थव्यवस्था का नहीं.... हमारी भूख का है... नहीं!
वो तो कर ही रहे हैं क्या करें बहुत बडिया जानकारी है आभार्
ReplyDeleteAapki baaton se poori tarah sahmat.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
itni jaldi nirash na hon.vahin girege .....jahan se gira diye ....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर है अस्तित्व का संसार ......जिसमे विविधता है .......बैचाअरिक पक्ष पर पुरा ध्यान दिया जाता है .....पढकर अच्छा लगता है ...
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