Friday 21 May 2010

लोकतंत्र के अप्स एंड डाउंस


शुक्रवार की शाम थी.... इंतजार के पहले दिन के मुहाने पर बैठे थे, अभी एक दिन और बाकी था। अपने एक जैसे रूटिन में सन्डे का इंतजार करते रहने के दौरान यूँ ही एक तुकबंदी रच डाली थी
सोम, मंगल खुमार
बुध, गुरु उतार
शुक्र, शनि इंतजार
तब कहीं आता है रविवार....
हाँ तो टीवी के सामने अपनी खाने की थाली लगी थी..... बालिका वधु का हमेशा की तरह ही अतार्किक उत्सुकता जगाने वाला अंत हुआ था। थाली में से दाल की कटोरी तो पहले ही अलग कर चुके थे, एक-एक कौर खाकर दोनों सब्जियों को भी रिजेक्ट कर चुके थे, आम के रस के साथ चपाती खाना.... च्च.... तो फिर चपाती किसके साथ खाएँ.... इसकी खोज करने के लिए किचन में पहुँचे तो दही नजर आया.... चीनी और पीसी इलायची डाल कर थाली में रखा..... समय को पुरी तरह से निचोड़ लेने के लिए टीवी के सामने बैठकर भी किताब हाथ में हुआ करती है, वो तब भी थी...... एनडीटीवी पर ब्रेक खत्म हो चुका था, हमारा सिर किताब में ही था कि श्योपुर का नाम सुनकर कान खड़े हुए..... किताब में बुकमार्क फँसाया और टीवी देखने लगे। रूबीना खान शापू मध्यप्रदेश में भूख की रिपोर्ट लेकर आई थी, वे श्योपुर में एक माँ से चर्चा कर रही थी, जो उसे बता रही थी कि वे अपने बच्चों को खाने में खरपतवार दे पाती है, क्योंकि उनके पास आलू खरीदने के भी पैसे नहीं है..... कौर गले में अटक गया और साँस सीने में.....हाथ का चम्मच चला-चला कर हमने दही की छाछ बना डाली थी। रिपोर्ट गुलज़ार की फिल्मों की तरह कभी फ्लैश बैक में 2008 में जाती तो कभी वर्तमान में आ जाती है, दो साल से हालात में कोई फर्क नहीं आया.... अपने शहर से उत्तर में श्योपुर, दक्षिण में खंडवा और पश्चिम में झाबुआ तक के 200 किमी के रेडियस में इस कदर भूख पसरी हुई है..... कहीं कुछ काँपा..... आँखों से कुछ पहले आँसू भी ठिठक गए..... छोटे-छोटे बच्चों की निकली हड्डियाँ और सूखे से चेहरे..... कहाँ पहुँचे हैं हम विकास करके.....?
रूबीना अब भोपाल में शाइनिंग इंडिया का नजारा दिखा रही थी.... हमारी रूकी हुई साँस फिर से चलने लगी, गले का कौर उतर गया, नहीं सब कुछ उतना बुरा भी नहीं है। उसने इस बात से अपनी रिपोर्ट का समापन किया कि – खाते-पीते मध्यमवर्ग को शर्म मगर नहीं आती.... उसी निश्छल बेबसी में हमने सवाल किया – आती है भाई बहुत आती है, लेकिन हम क्या कर सकते हैं......?
उसी बेचैनी में पतिदेव ने जवाब दिया – कुछ नहीं बस अपना टैक्स ईमानदारी से चुकाइए....
निश्छलता बाकी थी, अभी कल ही तो सवाल उठा कि हम कितना बचे हैं..... नहीं अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है...... अब भी कुछ बचे हुए हैं। फिर से एक बेतुका सवाल किया – हम तो ईमानदारी से अपना टैक्स भर रहे हैं, फिर भी तो बच्चे भूखे हैं।
सवाल करते ही सारी निश्छलता हवा हो गई...... खाँटी दुनियादारी सतह पर फैल गई..... जवाब जो पाना था – हमारे टैक्स चुकाने और बच्चों की भूख शांत होने के बीच बहुत सारे अप्स एंड डाउंस हैं...... हमारे लोकतंत्र के अप्स एंड डाउंस....
नहीं है क्या?

5 comments:

  1. vakai main humara loktntra
    ups & down par chal raha hai

    bahut achchhi baat likhi aapne

    http://sanjaykuamr.blogspot.com/

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  2. हल्की-फुल्की बातों से शुरू करके काफी गंभीर बात छेड़ दी आपने. लोकतंत्र में अप्स एंड डाउंस होना बुरा भी नहीं है उतना बशर्ते इन अप्स एंड डाउंस के बेच का गैप बहुत ज्यादा न हो.

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  3. यह दुनिया है मैडम ..ऐसे ही चलती रहेगी...

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  4. शर्म आती है ऐसे देश और समाज तथा ऐसे देश की सरकार पे /

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  5. kal hindustan mein aapke baare mein padha.aaj aapko padha.khub achha likhti hain ,ghazalnuma lekh,samandar kinare ki tasveer aur nav manmohak hai.likhna aur likhte rahna jaruri hai ,ham man ki tis ko kisiko suna nahin sakte lekin padha to sakte hain lekin loktantra hai kahan yahan to bhidtantra hai ,loottantra hai,bhrastachartantra hai

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