Sunday 17 October 2010

चाँद गर धरती पे उतरा, देखकर डर जाओगे


हर बार मोबाइल के प्लेलिस्ट में गज़ल को शफल करते हुए दो-चार गज़लों के बाद या तो चुपके-चुपके रात दिन या फिर ये दिल ये पागल दिल मेरा बजने लगती... फिर से अपनी पसंद की गज़ल ढूँढते रहते, आखिर उस दिन म्यूजिक फॉर्मेट करने के दौरान इन दोनों गज़लों को डिलीट मार ही दिया। हाँलाकि हर बार इस बात के लिए डाँट पड़ती है कि – ये क्या बचपना है? खेल बना लिया है म्यूज़िक फॉर्मेट करने को... जितना डालती हो, सुन भी पाती हो... ? यूँ बात तो सही ही है, लेकिन क्या करें कि कम से काम चलता नहीं है!
शहद-शरद रात और अगले दिन की छुट्टी हो तो फिर रात को देर तक जिए जाने के लालच में दूर तक चले जा रहे थे। रात बहुत हो चुकी थी, ये वही सड़कें थीं जो दिन में बिल्कुल दूसरी होती है... शायद ये खुद भी अपने को पहचान नहीं पाती हो...। दिन में जो सड़कें बेहाल-परेशान होती है, वो ही रात को थोड़ी उदास, खूबसूरत और सौम्य हो जाती है, तो घूमने का मजा दोगुना हो जाता है। यूँ लगता है कि वो हमारा ही इंतजार कर रही है। दूर से कहीं से फिर से वही गज़ल ये दिल ये पागल दिल मेरा... उस वक्त अंतरा चल रहा था – एक अजनबी झोंके ने जब पूछा मेरे ग़म का सबब, सेहरा की भीगी रेत पर मैंने लिखा आवारगी... वहीं रूक गए, सरे राह डूबने-डूबने का सामान मिल गया। तो फिर उसे डिलीट क्यों किया था?
अबकी स्मृति की दराज़ खुल गई और बहुत सारी बेतरतीब चीज़ों के बीच अचानक से एक नामालूम-सी फिल्म का डायलॉग याद आ गया कि – सपने जब तक दिमाग में रहते हैं, तभी तक खूबसूरत होते हैं, हाथों में आते ही वे खत्म हो जाते हैं...।
इसका इंटरप्रिटेशन तो यूँ है कि सब कुछ जो आप चाहते हैं, यदि वो हासिल हो जाए तो फिर क्या जीना आसान हो जाता है। नहीं... सरासर नहीं... तब तो शायद जीना और भी मुश्किल हो जाता है, तो फिर... अभाव ही जिंदगी को पूरा करते हैं। यदि आप किसी चीज़ को शिद्दत से पसंद करते हैं तो फिर उससे दूरी बना कर ही खुश रहा जा सकता है। कई बार उसकी दूरी ही सब कुछ को खूबसूरत बनाती है फिर से एक शेर याद आया –
हर हँसी मंज़र से यारों फ़ासले क़ायम रखो
चाँद गर धरती पे उतरा देखकर डर जाओगे...
क्या ग़लत है?
यूँ तो बात यहाँ ख़त्म हुई, लेकिन चलते-चलते मौसम की बात – कई बार कुछ बदमाशियाँ बड़ी मीठी लगती है, अब देखिए ना क्वाँर की विदाई इस तरह बादलों की शरारत से हो तो क्या मीठा नहीं लगेगा... दशहरे की शुभकामना के साथ...

2 comments:

  1. तमारे भी भोत-भोत शुभकामना गुड्डु...

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  2. aap achha likhti hain,lagatar likhti hain ,anchhuye pahlu ko samet ke likhti hain.....zindagi ko sadak aur ghazal ke darmiyane fasle par rakh kar sochte huye likhti hain,likhke sochti hain soch ke likhti hain.ghulam ali ki ghazalon ko mobile,ipod ya laptop se delete karengi..dil se kaise delete karengi.jab we gaate hain ..bhari duniyan mein ji nahin lagta ,jane kis chiz ki kami hai abhi..dil mein ik lahar si uthi hai abhi ..koi taaza hawa chali hai abhi......to aankhen roti hain puri kaynat bemaani lagne lagti hai..man bairagi ho jata hai..likhte rahen aur ham padhte rahen..(hindi font mein mujhe likhna nahin aata.)

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