Friday 12 August 2011

बड़े नोट-सा दिन... रेजगारी-सी रात...!



दिन तो महीने के अंत में पगार की तरह फटाफट खर्च हो जाता। आखिर में हथेली में फुटकर.. रेजगारी की तरह रात बच जाती है। सब कुछ खर्च करने के बाद बची रेजगारी कितनी कीमती होती है ये तो खत्म हुई सेलैरी के बाद ही जाना जा सकता है। तो बची हुई रेजगारी को दाँत से पकड़ते हुए हर रात किफायत बरतने की जद्दोजहद के साथ आती और फिसल जाती है। बचाते-बचाते भी फिजूलखर्ची हो ही जाती थी।

उस रात दिन भर की दुनियादारी झड़ गई थी औऱ रात खालिस होकर उतरी थी। पूनम की तरफ बढ़ता चाँद अपनी रूठी चाँदनी से रात को रोशन करने की कोशिश ही कर रहा था कि न जाने कहाँ से भूरी-लाल बदली ने उसे अपनी आगोश में समेट लिया था। रात गाढ़ी हो चली थी, न चाहते हुए भी एक-एक कर सिक्के खर्च हुए जा रहे थे। अचानक जैसे आखिरी बचे चंद सिक्कों की कीमत का खयाल आ गया हो और मुट्ठी तो पूरी ताकत से भींच लिया...। बाहर बारिश जैसे सितार के तारों को छेड़ रही थी और अंदर रेडियो भी जैसे राग नॉस्टेल्जिया बजा रहा हो। घर आजा घिर आए, बदरा साँवरिया... यादों के कबाड़ से कुछ बहुत ही मजेदार चीजें निकल आईं जैसे - बचपन में मोटी रही लड़की का नाम भाइयों ने मोटा आलू कर दिया और उसकी शादी तक हम सब उसे मोटा आलू ही कहते रहे, इसी तरह मोटी-नाक वाले लड़के का नाम भजिया आलू रख दिया और बाद में दोनों के नामों को एक साथ इस्तेमाल करते हुए मोटा आलू और भजिया आलू कह-कह कर चिढ़ाते रहते... घिर-घिर आई बदरिया कारी... यादों की पिटारी में कई सारी कबाड़ है, कई तो ऐसी कि उसे हाथ लगाते ही कहीं अंदर काँटे गड़ने लगे। सुनाते-सुनाते ऐसी हँसी चली कि हँसते-हँसते आँसू ही आ गए... गुजरा जमाना बचपन का... बाँहें गर्दन के नीचे से गुजरी, प्यार और आश्वासन की थपकी दिमाग के सनसनाते हुए तंतुओं पर एक गति से पड़ने लगी, दिमाग थोड़ा-सा शिथिल हुआ... एक-एक कर सिक्के खत्म होते जा रहे हैं... रेडियो बजा रहा है शराबी-शराबी ये सावन का मौसम... बस यूँ ही-सा एक विचार आया... कितना भी सुख हो, कितना भी दुख... आखिर तो एक दिन सब खत्म होना ही है... एक दिन तो मर ही जाना है... तो फिर ये स्साली जिंदगी सही क्यों नहीं जाती है...?

सावन के झूले पड़े, तुम चले आओ... कहते हैं कि कितनी भी जरूरत हो एक सिक्का हमेशा बचा कर रखना चाहिए, उसे बरकती सिक्का कहते हैं, फिर वही रात है, फिर वही रात है ख्वाब की... तो एक दिन सब कुछ के खत्म हो जाने के विचार के बाद भी उस आखिरी सिक्के को हथेली में मुट्ठी भींच कर बचा लिया कि कल फिर से नई शुरुआत होगी... बरकत बनी रहेगी...।

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