Monday 7 March 2011

क्रमशः मनाली



मनु-आलय... यानी मनाली
मनु हमारे आदि पुरुष हैं और यहाँ की किंवदंतियों के हिसाब से सृष्टि के प्रलय के बाद मनु अपनी नाव सहित यहीं आकर रूके थे। रूके होंगे... एक तो हिमालय और दूसरा सृष्टि के पुर्नसृजन के लिए इससे बेहतर जगह कोई हो सकती है क्या... यदि प्रलय सिर्फ भारतीय उप-महाद्वीप में ही आया हो तो... ।
अब सृष्टि के पुर्नसृजन के किस्से भारतीय पुराणों, इस्लाम और यहाँ तक कि ईसाईयों में भी एक ही तरह के हैं... हमारे लिए मनु इस्लाम और ईसाईयों के लिए वो नूह हुए... तो मनु मंदिर के बारे में उत्सुकता गहरी थी। साढ़े तीन किमी का रास्ता तय कर जब हम मनु मंदिर के पास पहुँचे तो लगा कि हम हकीकत में उसी काल में आ पहुँचे हैं। गाय-बकरियों के बीच...। यहाँ पहुँच कर एकबारगी विश्वास आ गया कि जरूर मनु महाराज अपनी नाव लेकर यहीं आए होंगे, यहीं उन्हें श्रद्धा भी मिली होगी... लेकिन ईड़ा...? वो तो मैदानी ही होगी... क्यों... चलिए छोड़िए इस बेकार के विचार को...।
धीरे-धीरे लौटने का समय करीब आने लगा था... एक-साथ दो चीजें अंदर चल रही थी, प्रकृति से दूर चले जाने इस सौंदर्य से अलग हो जाने की टीस तो अपने घर लौटने की उत्कंठा... कोई जगह चाहे स्वर्ग-सी सुंदर हो, लेकिन आखिर अपना घर, अपना घर होता है ना... !
तो सबसे खूबसूरत जगह रोहतांग दर्रा ... हम खूबसूरत चीजों को बचाकर रखते हैं खूबसूरत दिनों के लिए... इस बीच दो बार सुन चुके थे कि रोहतांग बंद है, अब तो चार दिन गुजर चुके हैं बर्फ गिरे... अब तो रास्ता खुल ही गया होगा...? लेकिन नहीं... रोहतांग तो गर्मियों में ही खुलता है, अभी बर्फ का मैदान घुमना हो तो सोलांग वैली जाना पड़ेगा।
सोलांग... नमक का मैदान

सोलांग वैली मनाली से मात्र 16 किमी दूर है। वहाँ पेड़-पौधे नहीं है, बस हर तरफ चकाचौंध सफेदी है। जिस दिन हम सोलांग के मैदान पर पहुँचे उस दिन सूरज भी आलस छोड़ कर बाहर आ चुका था। उस बर्फ... नमक के मैदान पर सूर्य की किरणों से जो रिफ्लेक्शन पैदा हो रहा था, उससे परेशानी हो रही थी। वो मैदान असल में मैदान था, नर्म बर्फ में पैर धँस रहे थे, यहाँ स्कीईंग, पैराग्लाईडिंग, आईस स्कूटर और पता नहीं कौन-कौन से खेल चल रहे थे। पर्यटकों का मेला-सा लगा हुआ था। बाजार भी था, लेकिन बर्फ और धूप ने मिलकर आँखों को चौंधिया दिया था। वहाँ रहने से ज्यादा मजेदार वहाँ के फोटो देखना लगा।
... और घर की ओर

अंतिम दिन था... वन विहार होटल के सामने ही था... बाहर से दिखता था कि यहाँ देवदार का जंगल होगा, लेकिन ये अहसास नहीं था कि ब्यास भी यहीं से बहकर निकलती होगी। दिल्ली के लिए बस 3.30 पर थी और इस तरह लगभग आधा दिन था। इसमें मोनेस्ट्री देखी और वन विहार भी। वन विहार देवदार का घना-सा जंगल है और उसके पीछे से ब्यास नदी बह रही है। एक बार फिर पहाड़ से उतरती नदी... ग्रामीण... खालिस... अनगढ़ सौंदर्य... देखने और भोगने को मिला... हूक उठी यदि गर्मी होती तो क्या हमारे स्पर्श के बिना यूँ ही पानी बहता रह सकता था, लेकिन अभी... नहीं हाथ ड़ाल कर देखा था... बर्फ-सा ठंडा पानी थी, गर्मियों की तिस्ता भी याद आई थी, और हाँ पार्वती भी तो...। एकाध और आसपास की जगह देखी और लिजिए बारिश होने लगी। हमें लगा, जैसे हमारा स्वागत हुआ, हो सकता हो वैसी ही विदाई भी हो... मौसम बहुत सर्द हो गया। पिछले नौ दिनों में इतना सर्द नहीं हुआ था। बस में बैठे हुए उसके चलने की दुआ करने लगे थे... जब तक हमारी बस चली तब तक बस बूँदे ही बरस रही थी, बादल नहीं उतरे थे विदाई में...।

1 comment:

  1. नु-श्रद्धा-इड़ी प्रस्ग को आगे बढ़ाओ please...

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