आज रात कुछ अजीब सा अहसास हुआ.... गहरी नींद में कमरे में पायल की रुन-झुन सुनाई दी..नींद थोडी सी कुनमुनाई और फिर सो गई....थोडी देर बाद कहीं से प्रभाती के सुर कानों में पड़े....लगा कि आधी रात को कौन गा रहा है? फिर किसी ने प्यार से थपथपा कर जगाया....आखें खोली तो सिरहाने उजली-निखरी सुबह खड़ी मुस्कुरा रही थी....फिर सो नहीं पाई...बहुत देर तक उसकी उंगली पकड़े उसकी रुनझुन के साथ चलती रही....पता नहीं कब सुबह ने अपना आँचल धीरे से छुडा लिया...और मेरा हाथ जवान होती दोपहर के हाथ में दे दिया...पुरा दिन उसके साथ न जाने कहाँ-कहाँ की खाक छानी.....और मखमल सी सरकती शाम की गोद में आ गिरी....फिर.....फिर पता नहीं क्या हुआ...? अब पहेली क्यों बुझाऊ इन दिनों कुछ नशा सा छाया रहता है....हर दिन की शुरुआत गुलगुली गुलाबी सुबह के खिलखिलाने की आवाज से होती है...हवाओं से दिन भर खुशबु आती रहती है...दोपहर मीठी-मीठी और शाम मखमली लगती है...रात गुनगुनाती हुई आती है और लोरी सुना कर सुलाती है... मन न जाने क्यों उड़ता फिरता है....यूँ ही केलेंडर देखा और सारा-का-सारा माजरा समझ में आ गया....वसंत आ चुका है....मतलब हमें मालूम हो या न हो...प्रकृति हमें किसी भी तरह जता देती है.....कहती है कि ये मेरा यौवन का....श्रृंगार का मौसम है....प्रकृति अपने पुरे शबाब पर है....वह सभी कलाओं में ख़ुद को अभिव्यक्त कर रही है...सुबह से रात तक दिन कितने रूप-मुड़ और शेड बदलता है....आप गिन नहीं पाते है. हर दम फाग के सुर गूंजते रहते है....हवा छेड़छाड़ करती रहती है. हम शहरियों को तो पता भी नहीं होता है कि खेतों में सरसों के फूल खिल गए है...पलाश पर सिंदूर दहक रहा है...फिर भी यूँ लगता है कि कहीं कुछ तो खुबसूरत जरुर हो रहा है....चारों और रंग महक रहें है... मन मयूर हो रहा है....होली यूँ ही नहीं मनाई जाती है...जब सभी ओर रंग उड़ रहें हो, मन में यूँ तरंग का आलम हो...बिना कारण आल्हाद का अहसास हो....तो फिर रंगों का खेल नहीं होगा तो क्या होगा...? वसंत ओर फागुन की जोड़ी राग, रंग, आनंद ओर सृजन का मौसम है....वातानुकूलित घरों-दफ्तरों, मल्टीप्लेक्स और मॉल से निकल कर ठूठ हुए पेडों पर फूटती कोपलें....कहीं दूरदराज में कोई भूले हुए पलाश के दहकने को देखें....प्रकृति के सुन्दरतम रूप को निहारें....उसके सौन्दर्य से प्रेरणा लेकर सिरजे.....शायद यही वसंत और फागुन का उत्स है....सार और अर्थ है... वसंत शुभ...आनंदकारी...आल्हादकारी....और सृजनात्मक हो....वाग्देवी सरस्वती....बुद्धि...मेधा और कल्पना से समृद्ध करें.तो वसंत आप में और आप वसंत में महके...इसी आकांक्षा के साथ वसंत पंचमी की शुभकामना
Tuesday, 27 January 2009
धूप का रंग है पीला...दिन हुआ सुनहरा...
Wednesday, 21 January 2009
समंदर के सिरहाने गुजरे वे दिन
जिसने भी सुना पेशानी पे सिलवटें लाकर कंधे उचकाकर पूछा-- ये कहाँ है....और वहाँ क्या है? सच भी है पर्यटन के नक्शे पर दमन का कोई नाम नहीं है... लेकिन दो रविवारों के बीच के दिनों को समंदर के सिरहानें बिताना तय कर हमने अपने कान बंद कर लिए.... आखिर मुंबई के अलावा और कौन सी जगह है जहाँ रात भर का सफर कर पहुँचा जा सकता हो...?
तो गुजरती रात का सिरा पकड़ कर जब हम वापी रेलवे स्टेशन उतरे तो मालवा के पठार की ठण्ड हमें छोड़ने वहाँ तक आई. दमन और वापी भाई-बहन की तरह हाथ पकड़े खड़े हुए है.... पता ही नहीं चलता है कि कहाँ वापी ख़त्म हुआ और कहाँ से दमन शुरू हुआ..... अचानक एक बड़े से सीमेंट का दरवाजा जिस पर लिखा हुआ है कि -- केन्द्र शासित प्रदेश दमन और दीव में आपका स्वागत है----आपको बताता है कि आप दमन पहुँच गए है..... नानी दमन बीच के पास होटल में अपना सामान रखा। बेचेनी इतनी कि बिना चाय पीए बीच पहुँच गए...पास ही चाय पी बीच पर सिलवासा से चले सूरज की आहट सुनाई पड़ने लगी थी .... लेकिन ये क्या.....? सामने जो आलसी अजगर की तरह पानी पसरा है क्या ये समंदर है? एक बारगी तो लगा कि शायद ये यहाँ की कोई बड़ी सी नदी है....क्योंकि समंदर इतना उनींदा ...इतना अलसाया कैसे हो सकता है? यदि वहाँ गुजराती में लगे बोर्ड को जिस पर लिखा था कि -- ये समुद्र बहुत तोफानी है. यहाँ स्नान करना मना है---नहीं देखा होता तो हम इसे नदी ही समझते.... खैर हमने सोचा कि आखिर रात भर इसने भी काफी मशक्कत की होगी इसलिए थक गया होगा....हम भी रूम पर जाकर सो गए....११ बजे के लगभग जब हम मोटी दमन बीच पर पहुंचे.... तो शुरूआती रेत के बाद बहुत दूर तक पत्थर ही पत्थर नजर आए.... हम भी उन पत्थरों पर चलते-चलते बहुत दूर निकल गए... फिर भी समंदर नहीं मिला... बकवास सी इडली ने जवाब दे दिया था.... सूरज ने दमन में अपनी किरणें फैला दी थी.... वहाँ भेल बेचने वाले घूम रहें थे...भूख लगने लगी थी...वहीं पत्थरों पर बैठ गए.... भेल खाने लगे.... थोड़ा ईंधन पहुँचा तो फिर आगे जाने का मन बनाया...लेकिन भेल वाले रमेश ने हमें कहा कि पानी कभी भी आ सकता है...आप आगे जाने की बजाय लौट जाओ क्योंकि ये समंदर छकाता है....सामने से ही नहीं कभी पीछे से भी आ धमकता है....और देखते देखते वो हमारे सामने था पुरी मस्ती और मूड के साथ....
दमन गंगा के पुल को पार कर जम्पोर बीच की तरफ़ चल पड़े... न जाने कैसे गली-कुचों से निकल कर एक छोटा से मैदान के बाहर ऑटो ने हमे उतार दिया... मैदान के उस पार रेत का टीले सा पार कर जब हम नीचे उतरे तो जानकी बेन की दुकान पर लगी कुर्सियों पर जा कर बैठ गए. यहाँ थोडी दूर तक सूखी....फिर थोडी नम....गीली और बहुत दूर तक रिसती रेत का मैदान पसरा पड़ा था....कुछ युवा क्रिकेट खेल रहें थे....घोड़ा गाड़ी समंदर के आँगन मजे से दौड़ रही थी...जानकी बेन ओम्लेट....मछली...चिप्स...नारियलपानी और चाय बेचती है...उनके घर आए नन्हे मेहमान रोहित ने राजेश को चुनौती देते हुए पूछा ---- वोलीबाल खेलना आता है...? राजेश ने भी चुनौती स्वीकार कर उसके साथ खेलना शुरू कर दिया..... बहुत दूर तक समंदर की तलाश में चलती चली गई....लेकिन फिर थक कर लौट आई... पैरों में रेत किरकिरा रही थी और मन में भी...आखिरकार फिर से लौटना है....सब कुछ को छोड़कर...उसी दुनिया में जिससे भागते फिरते है.... उन्हीं लोगों..उसी रूटीन में....तभी जानकी बेन ने बताया कि वो बहुत दूर जो अंगूठे के आकार के लोग नजर आ रहें हैं न...वहीं पानी है...उसे यहाँ तक आने में तीन घंटे लगेंगे.....हम बिना मिले ही लौट आए...अब इतनी पास आए है तो उस जख्मी शहर के हाल जाने बिना कैसे लौट सकते है.... जिससे मेरी बचपन की स्मृति...और कुछ छूटते रिश्ते जुड़े हुए है....जी हाँ मुंबई.... डबल डेकर फ्लाईंग रानी में सवार होकर पहुँच गए मुंबई... सबसे पहले जुहू.... फिर ताज....इस बार मुंबई घुमा नहीं....उसे जानने की कोशिश की... असाधारण लोगों का एक साधारण शहर...है मुंबई....जहाँ के बाशिंदे तमाम मुश्किलों....अभावों और प्रतिकूलताओं के बाद भी जीवंत और मददगार बनें हुए है.... जो असाधारण लोगों का एक साधारण शहर...है मुंबई....जहाँ के बाशिंदे तमाम मुश्किलों....अभावों और प्रतिकूलताओं के बाद भी जीवंत और मददगार बनें हुए है.... जो अपने अभावों को उपलब्धि और परेशानियों को गरिमा बना कर जी रहें है...बस लौटने का दिन आ गया....अपनी उसी दुनिया में जो उबाती है....बुलाती है....अच्छी भी और बुरी भी...जो जानी पहचानी भी और अपरिचित भी....
कुछ शहर के बारे में: मुंबई के इतने पास होने के बाद भी लगता है कि यहाँ मुंबई की हवा नहीं पहुंचती है.... पुरी तरह एक पारंपरिक मध्यमवर्गीय शहर... सिवा दमन गंगा नदी के किनारे बने एक किले और उसमे बने चर्च के यहाँ पुर्तगालियों के कोई अवशेष नजर नहीं आए....ये शहर कोली गुजराती बाशिंदों का शहर है....हमारे होटल के नेपाली काका ने हमें बताया कि यहाँ शराब के अलावा और कुछ नहीं है.... उन्होंने ठीक ही कहा.... चाय पीने के लिए हमें बहुत दूर-दूर तक चल कर जाना पड़ता था.... और हर तीसरी दुकान वहाँ शराब की थी लेकिन यदि दमन की चाय की चर्चा नहीं करना उसका अपमान करना होगा...कम जगह मिलती है लेकिन बहुत बढिया मिलती है....देहाती गाडापन और गुजराती मसाले का इतना कमल ब्लेंड जितना तो दार्जिलिंग में भी नहीं मिला.... वेटलैंड के समर्थक माफ़ करेंगे ये कहने के लिए कि दमन गुजरात का वेट लैंड है.... सही समझे शराब के मामले में....गुजरात जहाँ शराबबंदी है....वहाँ के शौकीन आख़िर कहाँ जायेंगे...? जल्द ही हमें ये समझ में आ गया कि यहाँ हमारा ज्यादा गुजारा नहीं है...फिर भी.....
दमन की यात्रा
थे....
लहर दर लहर वो आपके पास आता है... चिढाता...खिजाता और फिर मनाता रहा...हम भी उससे रूठने का नाटक करतें रहें.....बस यूँ ही रुठते मनाते शाम हो गई और विदाई का समय आ खड़ा हुआ...फिर वह धीरे-धीरे दूर और दूर होता चला गया और आख़िर में आंखों से ओझल हो गया बस कारवां गुजर गया गुबार देखते रहें.........
Thursday, 15 January 2009
इस्रेइल के हमले और हमारा असमंजस
तमाम दुनिया के विरोध और आलोचनाओं के बाद भी पश्चिम एशिया का लड़ाकू देश इस्रेइल गाजा पट्टी पर लगातार हमले कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के बाद भी उसका अभियान जारी है.....इसे कहते है शेरदिली.... आप चाहे कितना ही मानवीय हो लें यदि आपका विरोधी आपकी मानवता को नहीं समझता है तो आपकी सारी कसरत बेकार है...असल में इस्रेइल के गाजा पर हमले उस दौर में हो रहें है जब हमारा देश संकट के दौर से गुजर रहा है.... हम हताश है.... अविश्वास के शिकार है और स्वाभिमान की जरुरत के मारे है....इस निराशा से उबरने के लिए हमें नेता की जरुरत है और इसके लिए हम कोई भी कीमत देने के लिए तैयार है.... चाहे वो कीमत अपने मूल्यों के रूप में ही क्यों न चुकानी पड़ें। ये सही है की isreil बेवजह एशिया की पश्चिमी पट्टी को खून से रंग रहा है.... हमास के बहाने का खून बहा रहा है.... अमेरिका की सरपरस्ती में अपने क्षेत्र में शक्ति प्रदर्शन कर रहा है... और कोई मौका होता तो हम ( हम पर शायद सबको आपत्ति हो इसलिए मैं) भी इस तबाही का जमकर विरोध करते.... लेकिन आज ये लगता है कि काश हम भी ऐसा करते.....कर सकते.... अपनी लडाई को ख़ुद के बूते अंजाम पर पहुँचाने की कुव्वत हासिल कर पाते... हम पर हुए हमले का प्रतिकार बिना किसी के कंधे का सहारा लिए कर पाते.... काश इस बार हम भी इस्रेइल हो पाते....दरअसल यहाँ से हमारा असमंजस शुरू होता है....मानवीय मूल्यों और भावनाओं के बीच संघर्ष.....हिंसा हर हालत में अमानवीय है.... और गाजा पट्टी-इस्रेइल मामला हर सूरत में अमानवीय है.... लेकिन जब सवाल मुंबई पर आतंकवादी हमलों और इसके बाद हमारी सरकार द्वारा की गई और की जा रही कार्रवाही का हो तो हम अनायास ही भावना के क्षेत्र में चले जाते है...हमें लगता है कि हमें भी इस्रेइल की तरह ही प्रतिकार करना चाहिए.... करना होगा... आज इस्रेइल हमारा नायक.... क्योंकि उसके चारों तरफ़ से दुश्मनों से घिरे होने के बाद भी वह वही करता है.... जिसे वो ठीक समझता है.... जो उसके लिए ठीक है... और हम...? हम जो ठीक समझते है उसे तक क्रियान्वित नहीं कर पाते.....हमें लगता है कि हमें भी इस्रेइल की तरह ही प्रतिकार करना चाहिए.... करना होगा...
हम तो वो भी नही कर सकते है जिसे पुरी कहती है कि किया जाना चाहिए....हमें तो इसके लिए भी अमेरिका सहित पुरी दुनिया की सहमति की जरुरत होती है..... असल में हमें कृष्ण जैसे नेता की जरुरत है और गाँधी जैसे नायक की.... क्योंकि हम नायक की पूजा करते है और नेता का अनुसरण करतें है.... हमें कृष्ण होने की और गाँधी को सोचने की जरुरत है जबकि बदकिस्मती से गाँधी हमारे नेता है. मानवीय मूल्य हमारे जीवन के प्रदर्शक है... और भावना हमारी संचालक ...... ऐसा अक्सर होता है कि प्रदर्शक मूल्य हार जाते है और संचालक शक्ति जीत जाती है.... मेरे साथ तो ऐसा ही होता है और आपके.....?
हम तो वो भी नही कर सकते है जिसे पुरी कहती है कि किया जाना चाहिए....हमें तो इसके लिए भी अमेरिका सहित पुरी दुनिया की सहमति की जरुरत होती है..... असल में हमें कृष्ण जैसे नेता की जरुरत है और गाँधी जैसे नायक की.... क्योंकि हम नायक की पूजा करते है और नेता का अनुसरण करतें है.... हमें कृष्ण होने की और गाँधी को सोचने की जरुरत है जबकि बदकिस्मती से गाँधी हमारे नेता है. मानवीय मूल्य हमारे जीवन के प्रदर्शक है... और भावना हमारी संचालक ...... ऐसा अक्सर होता है कि प्रदर्शक मूल्य हार जाते है और संचालक शक्ति जीत जाती है.... मेरे साथ तो ऐसा ही होता है और आपके.....?
सतह के नीचे बहती मज़बूरी
आज मुंबई की बात..... हादसों को अपने सीने पर सहने के बाद मुंबई प्रवास सैलानियों की तरह नहीं बल्कि पर्यवेक्षक की नजर से हुआ। ३ दिनों तक तूफान से जूझने के बाद क्या और कितना बदला यह जानने की उत्सुकता ज्यादा थी। जानना था कि क्या अब भी शहर की हवा नमकीन है.... क्या अब भी इस शहर की रातों का जागना और दिन का भागना बदस्तूर जारी है.... अब भी समंदर चहलकदमी करते हुए किलोमीटर २ किलोमीटर दूर चला जाता है और इसी तरह लौट आता है? क्या अब भी अरब सागर के पश्चिम में ढलते सूरज की परछाई से लहरें गलबहिया करतें है....अब भी लोग लोकल और बसों की रफ्तार से लोग कदम-ब-कदम करतें हैं...अब भी जमीन और आसमान के बीच आधी रात में प्रेशर कुकर की सीटी सुनाई देती है...? पहले लोग गेटवे आफ इंडिया की सैर के लिए आते थे....आज ताज के दीदार के लिए आते है.... गेटवे का गौरव अंग्रेज इतिहास का हिस्सा हो गया और आज आतंक के दौर के इतिहास का आइना टाटा का होटल ताज महल हो गया ..... कहतें है की हमलों को झेल रहें शहर के दुसरे हिस्सों की जिंदगियां मशीन की तरह रफ्तार से चल रही थी बाद में धीरे-धीरे सब कुछ सहज होता चला गया....दरअसल यह सहजता नहीं है...ये मज़बूरी है....मालेगाँव से मैन हट्टन तक पसरी एक सी मज़बूरी....कौन सा शहर रुका है...कौन का शहर खाली हो गया है..? कोई नहीं .....असल में जीवट और जिजीविषा के नीचे लगतार बह रही है हमारी बेबसी....कुछ न कर पाने और निरंतर सहते रहने की मज़बूरी.... कहाँ जा सकते हैं इससे भागकर....?
Tuesday, 13 January 2009
जीवन के मायने क्या?
बड़ी उदास सी सुबह और बोझिल सा दिन है....एक सा कम और एक से जीवन से ऊब का दौर है.....फिर से सवालों ने सिर उठाये है.... हर दिन आता है और निकल जाता है... रात खाली हो जाती है.... मशीन से जीते हुए संवदेनाओं के सिरे भी थाम नहीं पाते है.... काम करना....खाना-सोना..... घूमना-फिरना.....खरीदना....मजे करना....पैसा कमाना... और खर्च करना.... क्या यही जीवन है? या जीवन का कोई और भी मकसद है....? यूँ कोई और मकसद नजर तो नहीं आता है.... फिर सवाल उठता है कि जीवन क्यों है...? हम क्या इसलिए जीते है कि हममे मरने की हिम्मत नहीं है? और यदि जीवन का कोई मतलब नहीं है तो फिर हमारे सुख-दुःख....नाकामयाबी और उपलब्धि.... खुशी या फिर दर्द क्या इनमें से क्या किसी का भी कोई मतलब नहीं है? तो फिर हम क्यों है....क्या हम स्रष्टि के संचालन के लिए मात्र मोहरे है...? तो हमारे अनुभव....अहसास.....रचना....कर्म....किसी का भी कोई मतलब नहीं है ? क्या वाकई दुनिया मिथ्या है...? और हमारे होने या ना होने का कोई मतलब.....मकसद नहीं है..... तो हम क्यों है...? बड़ी उलझन है.... उदासी और हताशा है. होने की निर्रथकता का गहरा अहसास.....बेबसी... होने और ना होना चाहने के बीच का निर्वात.....
Saturday, 10 January 2009
पाक-नापाक, हम ढुलमुल
मुंबई हादसे को महीने भर से ज्यादा हो गया है..... हम पहले ही दिन से पाकिस्तान के खिलाफ सुबूत दे रहे है.... और वो लगातार हमें झुठला रहा है.... वो कह रहा है कि हम युद्ध के लिए तैयार है..... हम कह रहें है कि हम युद्ध नहीं चाहते है।
समझ में नहीं आ रहा है कि गुनाह किसने किया है....? हमारे लिए इंसानी जानों की कीमत क्या है...? कभी-कभी तो शुबहा होने लगता है कि हमारे सियासतदानों के लिए अवाम का मतलब कहीं मात्र वोट ही तो नहीं ....? हमारे लिए ये कोई पहला मौका नहीं है कि हम आतंकवाद के शिकार हुए है ...... संसद पर हुए हमले के बाद हम कुछ नहीं कर पाए..... हमारी समस्या ये है कि हम कोई भी कार्यवाही करने के लिए दूसरों की और देखते रहते है....? इस मामले में भी हम चाहते है कि हमे अमेरिका इशारा करे ...... और हम कार्यवाही करें ....हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका ने हमारे मुश्किल के दौर में हमे न सिर्फ़ अकला छोड़ दिया था बल्कि हमारे लिए मुश्किलें बढाई थी.... और हम इतनी बड़ी घटना के बाद भी सिवाए बयानबाजी के और कुछ भी नहीं कर रहें है.....दुसरे विश्व्ययुद्ध के बाद से पुरी दुनिया में यदि अमेरिकी भूमिका को देखें तो स्पष्ट हो जायगा कि उस देश की नीयत क्या है.... पुरी दुनिया में जहाँ कहीं अमेरिकी हस्तक्षेप हुआ है वहां अमेरिकी स्वार्थ रहें है....(यहाँ स्वार्थ और हितों में अन्तर है, अन्तरराष्ट्रीय राजनीति पुरी तरह हितों का ही खेल है, लेकिन अमेरिकी राजनीति पुरी तरह स्वार्थों से ही संचालित होती है) अब हमें इस मुगालते से भी बाहर आ जाना चाहिए की उसने भारत से परमाणु समझोता इसलिए किया कि हमे इसकी जरुरत है.... नहीं ये डील इसलिए हुई है कि उसे इस डील की जरूरत है ....मंदी की चपेट में आई अपनी अर्थव्यवस्था को बूस्ट करने के लिए किसी ऐसे बकरे की जरुरत थी... जिसकी जनसंख्या विशाल हो..... और ये हमसे बेहतर ओर कौन हो सकता है..... आखिर आतंकवाद ने उत्तर और दक्षिण के देशों के झगडों को हाशिये पर धकेल दिया है लेकिन ये मुद्दा खत्म नहीं हुआ है कि उत्तर के देश गरीब देशों को अपनी पुरानी हो चुकी तकनीक ऊँचे दामों पर बेचते है.....इस तरह से गरीब देश इन अमीर देशों के लिए ऐसे कचराघर है.... जहाँ वे अपना कचरा भी फेंकतें है और उसकी कीमत भी लेते है..... अमेरिका के लिए हम सिर्फ़ एक बड़ा बाजार है..... जहाँ वो सब कुछ बेच सकता है....अमेरिका और पाकिस्तान हमेश से रणनीतिक साझीदार रहें है और रहेंगे अमेरिका कभी भी नहीं चाहेगा कि भारत और पाकिस्तान के रिश्तें सुधरे..... यदि ऐसा होता है तो सबसे ज्यादा नुकसान उसे ही होगा.... उसका हथियारों का बाजार प्रभावित होगा और दक्षिण एशिया में उसकी जड़ें कमजोर होगी.... फिर जरा सोचिये आतंकवाद से सबसे ज्यादा फायदा किसे हुआ है....? किसने इस विषबेल को पोसा है? अमेरिका ने ही ना तो फिर वो क्यों चाहेगा की दक्षिण और पश्चिम एशिया में शान्ति हो तभी तो यहाँ पाकिस्तान को और पश्चिम में इसरैएल की पीठ पर लगातार अमेरिका का हाथ है.....फिर लौटते है मुंबई मामले पर... अब अमेरिका ने पलटी मरी और इस बात पर जोर देने लगा है की भारत को पाकिस्तान के साथ मिलकर जाँच करनी चाहिए..... अब कहिये कि शिकार और शिकारी मिलकर फैसला करेंगे तो .... गौर फरमाए कि ---- मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है, क्या मेरे हक में फैसला देगा.....तो अब भलाई इसी में है कि हम कन्धों की तलाश छोडें और अपने साथ हुए अन्याय का ख़ुद ही प्रतिरोध करें..... किसका इंतजार है अब???
Friday, 9 January 2009
और भी गम है ज़माने में मोहब्बत के सिवा
आसमान मेहरबान हो रहा है.....प्रकृति अपने औदात्य से सौन्दर्य के संसार की रचना कर रही है .....सुनहरी सुबह धुंधली हो गई सूरज को बादलों ने कैद कर दिया है...और पुरे आसमान पर धमाचौकडी मचाए हुए है....बादलों और सूरज के बीच मोहब्बत का रूठने मनाने और छेड़-छाड़का मौसम है .... इस मौसम ने लिहाफ का गुनगुनापन भला लग रहा है..... ऐसे में सुबह का आगाज़ बूंदों के छमछम ने नींद गायब कर दी कोफी के प्याले के साथ एक बारगी विचार आया कि ये दुनिया घंटे दो घंटे ठहर क्यों नहीं जाती .........हम अपने साथ आ जाए और अहसास ऐ दुनिया गुम हो जाए ...... मगर हाय ये किस्मत आंगन में धप की आवाज़ हुई और हाथ कांपा.... कोफी छलकी ...... आज का अखबार सामने था .....
कबीर ने समझ कर हमें भी समझाया कि माया महाठगिनी.....मगर हम समझ कर भी नहीं समझे....अखबार में छपी ३ ख़बरों ने दिमाग के गोदाम में हलचल मचा दी.....१. मुंबई की घटना पर भारत-पाक के बीच बेवजह की और बेनतीजा आरोप-प्रत्यारोप....२. इस्राइल का गाजा पर हमला और ३. सत्यम का असत्यम.....हाँ इसी में कही मुंबई को हादसें के बाद इस शहर की पड़ताल भी करेंगे...... मगर आज नही....
कबीर ने समझ कर हमें भी समझाया कि माया महाठगिनी.....मगर हम समझ कर भी नहीं समझे....अखबार में छपी ३ ख़बरों ने दिमाग के गोदाम में हलचल मचा दी.....१. मुंबई की घटना पर भारत-पाक के बीच बेवजह की और बेनतीजा आरोप-प्रत्यारोप....२. इस्राइल का गाजा पर हमला और ३. सत्यम का असत्यम.....हाँ इसी में कही मुंबई को हादसें के बाद इस शहर की पड़ताल भी करेंगे...... मगर आज नही....
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