Thursday, 15 January 2009
सतह के नीचे बहती मज़बूरी
आज मुंबई की बात..... हादसों को अपने सीने पर सहने के बाद मुंबई प्रवास सैलानियों की तरह नहीं बल्कि पर्यवेक्षक की नजर से हुआ। ३ दिनों तक तूफान से जूझने के बाद क्या और कितना बदला यह जानने की उत्सुकता ज्यादा थी। जानना था कि क्या अब भी शहर की हवा नमकीन है.... क्या अब भी इस शहर की रातों का जागना और दिन का भागना बदस्तूर जारी है.... अब भी समंदर चहलकदमी करते हुए किलोमीटर २ किलोमीटर दूर चला जाता है और इसी तरह लौट आता है? क्या अब भी अरब सागर के पश्चिम में ढलते सूरज की परछाई से लहरें गलबहिया करतें है....अब भी लोग लोकल और बसों की रफ्तार से लोग कदम-ब-कदम करतें हैं...अब भी जमीन और आसमान के बीच आधी रात में प्रेशर कुकर की सीटी सुनाई देती है...? पहले लोग गेटवे आफ इंडिया की सैर के लिए आते थे....आज ताज के दीदार के लिए आते है.... गेटवे का गौरव अंग्रेज इतिहास का हिस्सा हो गया और आज आतंक के दौर के इतिहास का आइना टाटा का होटल ताज महल हो गया ..... कहतें है की हमलों को झेल रहें शहर के दुसरे हिस्सों की जिंदगियां मशीन की तरह रफ्तार से चल रही थी बाद में धीरे-धीरे सब कुछ सहज होता चला गया....दरअसल यह सहजता नहीं है...ये मज़बूरी है....मालेगाँव से मैन हट्टन तक पसरी एक सी मज़बूरी....कौन सा शहर रुका है...कौन का शहर खाली हो गया है..? कोई नहीं .....असल में जीवट और जिजीविषा के नीचे लगतार बह रही है हमारी बेबसी....कुछ न कर पाने और निरंतर सहते रहने की मज़बूरी.... कहाँ जा सकते हैं इससे भागकर....?
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कहाँ जा सकते हैं इससे भागकर....?
ReplyDeleteaccha lekh
Bahut Khub !!!!
ReplyDeleteapna blog lekhan niymit rakhiyega.
Shubhakaamnayen
अमिताजी नीरव,
ReplyDeleteआपने ठीक ही कहा है।
कितनी घुटन का एहसास होता है:
ReplyDeleteकहाँ जा सकते हैं इससे भागकर....?
सच में.
aapne taj me coffy pee...?
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