Wednesday, 21 January 2009

समंदर के सिरहाने गुजरे वे दिन

जिसने भी सुना पेशानी पे सिलवटें लाकर कंधे उचकाकर पूछा-- ये कहाँ है....और वहाँ क्या है? सच भी है पर्यटन के नक्शे पर दमन का कोई नाम नहीं है... लेकिन दो रविवारों के बीच के दिनों को समंदर के सिरहानें बिताना तय कर हमने अपने कान बंद कर लिए.... आखिर मुंबई के अलावा और कौन सी जगह है जहाँ रात भर का सफर कर पहुँचा जा सकता हो...?

तो गुजरती रात का सिरा पकड़ कर जब हम वापी रेलवे स्टेशन उतरे तो मालवा के पठार की ठण्ड हमें छोड़ने वहाँ तक आई. दमन और वापी भाई-बहन की तरह हाथ पकड़े खड़े हुए है.... पता ही नहीं चलता है कि कहाँ वापी ख़त्म हुआ और कहाँ से दमन शुरू हुआ..... अचानक एक बड़े से सीमेंट का दरवाजा जिस पर लिखा हुआ है कि -- केन्द्र शासित प्रदेश दमन और दीव में आपका स्वागत है----आपको बताता है कि आप दमन पहुँच गए है..... नानी दमन बीच के पास होटल में अपना सामान रखा। बेचेनी इतनी कि बिना चाय पीए बीच पहुँच गए...पास ही चाय पी बीच पर सिलवासा से चले सूरज की आहट सुनाई पड़ने लगी थी .... लेकिन ये क्या.....? सामने जो आलसी अजगर की तरह पानी पसरा है क्या ये समंदर है? एक बारगी तो लगा कि शायद ये यहाँ की कोई बड़ी सी नदी है....क्योंकि समंदर इतना उनींदा ...इतना अलसाया कैसे हो सकता है? यदि वहाँ गुजराती में लगे बोर्ड को जिस पर लिखा था कि -- ये समुद्र बहुत तोफानी है. यहाँ स्नान करना मना है---नहीं देखा होता तो हम इसे नदी ही समझते.... खैर हमने सोचा कि आखिर रात भर इसने भी काफी मशक्कत की होगी इसलिए थक गया होगा....हम भी रूम पर जाकर सो गए....११ बजे के लगभग जब हम मोटी दमन बीच पर पहुंचे.... तो शुरूआती रेत के बाद बहुत दूर तक पत्थर ही पत्थर नजर आए.... हम भी उन पत्थरों पर चलते-चलते बहुत दूर निकल गए... फिर भी समंदर नहीं मिला... बकवास सी इडली ने जवाब दे दिया था.... सूरज ने दमन में अपनी किरणें फैला दी थी.... वहाँ भेल बेचने वाले घूम रहें थे...भूख लगने लगी थी...वहीं पत्थरों पर बैठ गए.... भेल खाने लगे.... थोड़ा ईंधन पहुँचा तो फिर आगे जाने का मन बनाया...लेकिन भेल वाले रमेश ने हमें कहा कि पानी कभी भी आ सकता है...आप आगे जाने की बजाय लौट जाओ क्योंकि ये समंदर छकाता है....सामने से ही नहीं कभी पीछे से भी आ धमकता है....और देखते देखते वो हमारे सामने था पुरी मस्ती और मूड के साथ....
दमन गंगा के पुल को पार कर जम्पोर बीच की तरफ़ चल पड़े... न जाने कैसे गली-कुचों से निकल कर एक छोटा से मैदान के बाहर ऑटो ने हमे उतार दिया... मैदान के उस पार रेत का टीले सा पार कर जब हम नीचे उतरे तो जानकी बेन की दुकान पर लगी कुर्सियों पर जा कर बैठ गए. यहाँ थोडी दूर तक सूखी....फिर थोडी नम....गीली और बहुत दूर तक रिसती रेत का मैदान पसरा पड़ा था....कुछ युवा क्रिकेट खेल रहें थे....घोड़ा गाड़ी समंदर के आँगन मजे से दौड़ रही थी...जानकी बेन ओम्लेट....मछली...चिप्स...नारियलपानी और चाय बेचती है...उनके घर आए नन्हे मेहमान रोहित ने राजेश को चुनौती देते हुए पूछा ---- वोलीबाल खेलना आता है...? राजेश ने भी चुनौती स्वीकार कर उसके साथ खेलना शुरू कर दिया..... बहुत दूर तक समंदर की तलाश में चलती चली गई....लेकिन फिर थक कर लौट आई... पैरों में रेत किरकिरा रही थी और मन में भी...आखिरकार फिर से लौटना है....सब कुछ को छोड़कर...उसी दुनिया में जिससे भागते फिरते है.... उन्हीं लोगों..उसी रूटीन में....तभी जानकी बेन ने बताया कि वो बहुत दूर जो अंगूठे के आकार के लोग नजर आ रहें हैं न...वहीं पानी है...उसे यहाँ तक आने में तीन घंटे लगेंगे.....हम बिना मिले ही लौट आए...अब इतनी पास आए है तो उस जख्मी शहर के हाल जाने बिना कैसे लौट सकते है.... जिससे मेरी बचपन की स्मृति...और कुछ छूटते रिश्ते जुड़े हुए है....जी हाँ मुंबई.... डबल डेकर फ्लाईंग रानी में सवार होकर पहुँच गए मुंबई... सबसे पहले जुहू.... फिर ताज....इस बार मुंबई घुमा नहीं....उसे जानने की कोशिश की... असाधारण लोगों का एक साधारण शहर...है मुंबई....जहाँ के बाशिंदे तमाम मुश्किलों....अभावों और प्रतिकूलताओं के बाद भी जीवंत और मददगार बनें हुए है.... जो असाधारण लोगों का एक साधारण शहर...है मुंबई....जहाँ के बाशिंदे तमाम मुश्किलों....अभावों और प्रतिकूलताओं के बाद भी जीवंत और मददगार बनें हुए है.... जो अपने अभावों को उपलब्धि और परेशानियों को गरिमा बना कर जी रहें है...बस लौटने का दिन आ गया....अपनी उसी दुनिया में जो उबाती है....बुलाती है....अच्छी भी और बुरी भी...जो जानी पहचानी भी और अपरिचित भी....

कुछ शहर के बारे में: मुंबई के इतने पास होने के बाद भी लगता है कि यहाँ मुंबई की हवा नहीं पहुंचती है.... पुरी तरह एक पारंपरिक मध्यमवर्गीय शहर... सिवा दमन गंगा नदी के किनारे बने एक किले और उसमे बने चर्च के यहाँ पुर्तगालियों के कोई अवशेष नजर नहीं आए....ये शहर कोली गुजराती बाशिंदों का शहर है....हमारे होटल के नेपाली काका ने हमें बताया कि यहाँ शराब के अलावा और कुछ नहीं है.... उन्होंने ठीक ही कहा.... चाय पीने के लिए हमें बहुत दूर-दूर तक चल कर जाना पड़ता था.... और हर तीसरी दुकान वहाँ शराब की थी लेकिन यदि दमन की चाय की चर्चा नहीं करना उसका अपमान करना होगा...कम जगह मिलती है लेकिन बहुत बढिया मिलती है....देहाती गाडापन और गुजराती मसाले का इतना कमल ब्लेंड जितना तो दार्जिलिंग में भी नहीं मिला.... वेटलैंड के समर्थक माफ़ करेंगे ये कहने के लिए कि दमन गुजरात का वेट लैंड है.... सही समझे शराब के मामले में....गुजरात जहाँ शराबबंदी है....वहाँ के शौकीन आख़िर कहाँ जायेंगे...? जल्द ही हमें ये समझ में आ गया कि यहाँ हमारा ज्यादा गुजारा नहीं है...फिर भी.....

4 comments:

  1. दमन के बारे में जान कर अच्छा लगा ..ख़ास कर यहाँ के समुन्दर के मिजाज के बारे में जान कर ..

    ReplyDelete
  2. एक बार दमन जाने का मन है, देखिये कब जाना होता है.

    ReplyDelete
  3. बहुत अच्‍छा लगा आपकी शत्रा के बारे में जानकर...दमन के बारे में भी अच्‍छी जानकारी मिली ।

    ReplyDelete
  4. pl. post some more photograps on daman.

    ReplyDelete