Wednesday, 25 March 2009

अनायास उसका आना....

प्यारी सूरत वालें सारे पत्थर दिल हो मुमकिन है
हम तो उस दिन राय देंगें जिस दिन धोखा खायेंगे.....
जी नहीं यह मेरा नहीं है यह तो हसरत जयपुरी का शेर है....खत्म होते दिन के सिरे का रात से गठबंधन कराती लम्बी सी गर्मी की शाम को..... अनायास ही अपने खजाने में से गुलाम अली की एक भूली बिसरी केसेट हाथ आ गई और शाम बन गई.... इस समय ना तो गुजरे दौर से शिकवा है ना आने वाले से कोई उम्मीद.....ना गुजरते को पकड़ने की चाहत हो....सफ़ेद से सांवले होते आसमान का एक टुकडा जो मेरी खिड़की पर छाया है....उसी को आंखों पर रख कर.....
वादे की शब खामोश फिजायें, दिल में खलिश वो आए ना आए
दर पे निगाहें लब पे दुआएं उफ़ री मोहब्बत हाय जवानी....
चल रही है गजल....इस समय ना कुछ पा लेने की ख्वाहिश है और ना कोई सपना है...ना कुछ पाने की खुशी है और ना कुछ छुट जाने का मलाल है....बस वक़्त के साथ बहते जाने का सुख है..... ये आनंद है....शब्द से परे....मौन...लगातार चकर-चकर करती जबान चुप है....मन हवाओं पर सवार है और वह भी इस अनायास आ पहुचें सुख का लुत्फ़ ले रहा है.... बड़े दिनों से बिसराए इस स्वाद ने आज फिर से जीने का अहसास दे दिया....वरना तो हर दिन एक मशीन सा आता और बिना अहसास के चला जाता है...शायद इसे ही हमारे आध्यात्म में आनंद कहा जाता है....जो ईश्वर का सा अनुभव कराता है....और आख़िर में मंजिलें गम से गुजरना तो है आसां है एक बार
इश्क है नाम ख़ुद अपने से गुजरने जाने का....
कुछ ऐसा ही हाल है इन दिनों.....बस

2 comments:

  1. subhan allah.aap bimari mein jyada creative ho gayi hain.

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  2. aap koi novel kyon nahi likhati?

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