Monday 21 September 2009

ब्रूस अल्माइटी और गॉड



तुम्हारे लिए ईश्वर क्या है?
कॉफी के कोको पावडर वाले झाग को चम्मच से सिप करती लड़की से विश्वविद्यालय के कैंटीन में बैठे लड़के ने पूछा।
इस एकाएक पूछ गए प्रश्न ने उसे सोचने पर मजबूर कर दिया। थोड़ी देर सोचने के बाद लड़की ने कहा। --ही इज लाइक पेरेंट टू मी....।
मतलब....?
मतलब जिससे मैं शिकायत कर सकूँ....डिमांड और जिद्द कर सकूँ..... रूठ सकूँ और अपने अभाव बता सकूँ, उन्हे दूर करने की गुजारिश कर सकूँ और अपने दुखड़े कह सकूँ।
बस...?
हाँ।
कॉफी पी चुकने के बाद अपने कप को टेबल पर रखते हुए लड़के ने बहुत सहानुभूति से कहा तुम्हारा ईश्वर तो बहुत बेचारा है। लड़की ने बहुत आहत होकर उसे देखा..... बेचारा क्यों?
बेचारा इसलिए कि तुम और तुम्हारे जैसे अनगिनत लोग उसके साथ वैसा ही कुछ करते होंगे, लेकिन वह बेचारा अपनी पीड़ा किससे कहता होगा?
वह ईश्वर है उसे कोई दुख नहीं होता है।- लड़की ने कप रखकर कुर्सी से उठते हुए कहा।
क्या वह मानवेत्तर है?- लड़के ने उसी गंभीरता से उससे प्रश्न किया।
हाँ वह देवता है।
तो क्या तुम यह कहना चाहती हो कि देवताओं को कोई दुख नहीं होता। दुख वहाँ नहीं होता मैडम, जहाँ कोई मानवीय भावना और संवेदना नहीं होती, और यदि ऐसा होता है तो वह न मानव होता है और न ही देवता.... वह तो.....।-- उसने अपनी बात अधूरी ही रहने दी। फिर कहना शुरू किया कि --- तुम्हारे इंद्र का सिंहासन विश्वामित्र की तपस्या से डगमगाने लगा तो उसने मेनका को विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा था। यदि हम ये माने तुम्हारे कथित ईश्वर देवता की श्रेणी के हैं तब भी उनके पास सुख-दुख, गर्व-अहंकार, असुरक्षा और तमाम मानवीय कमजोरी और भावनाएँ होंगी, तो फिर वह दुख से कैसे बच सकता है?
फागुन की शाम दोनों सूर्य के डूबने की दिशा की ओर ही बढ़ रहे थे। लड़की गुम हो गई थी डूबते सूरज की निष्कलुष मासूमियत और उदारता में.....। ये लड़की का सबसे पसंदीदा समय है। अपने सूरज से विदा होते दिन की उदासी के स्वागत के लिए वह अपने कमरे की सारी खिडकियों और दरवाजों को खोल देती है, जिससे धीरे-धीरे उदास साँवलापन उसके कमरे में आश्रय पा सके। फिर धीरे-धीरे घना होता अंधेरा..... उसे अच्छा लगता है, क्योंकि उसमें कुछ भी और नहीं होता......बस खुद के होने का अशरीरी अहसास होता है। न दुनिया और न अहसास-ए-दुनिया.....। रोशनी में भटकाव होता है.... अंधेरे में एकाग्रता। वह किसी से भी इन बातों को नहीं कहती क्योंकि उसे डर है कि तमसो मा ज्योतिर्गमय की संस्कृति में अंधेरे के प्रति इस तरह का दर्शन कहीं उसे उपहास का पात्र न बना दे....।
15 साल बाद
एक 'सी' सिटी में वह लड़की अपने घर के सामने ढेर सारे शॉपिंग बैग संभाले कार से उतरी। उस लड़के ने जो कि अब उसका पति है उससे कहा कि बाकी बचे हुए बैग्स मैं ले आऊँगा, तुम जाओ....। अपने घर के ड्राईँग रूम में सारे शॉपिंग बैग्स फैला कर वह लड़की देख रही है। अचानक वह उदास हो गई... क्यों..... उसे लगा कि इतने सारे बैग्स के बीच वह कुछ छोड़ आई है, कुछ उससे छूट गया है, फिसल गया है..... उसे खुद पर अचरज हुआ.... जीवन में जिस चीज को उसने अभाव माना था, वो सब मिट गए हैं, वह वो सब कुछ कर सकती है, जो वह शुरू से करना चाहती थी.... फिर भी सब कुछ वैसा नहीं है जिसकी उसने कभी कल्पना की थी.... फिर....! वो सब कुछ मृग तृष्णा थी....? लगा कि ईश्वर ने देर से ही सही उसकी सारी इच्छाएँ पूरी की, फिर कहाँ क्या रिक्त रह गया.... अब वह और क्या चाहती है? तभी वह लड़का भी अंदर आ गया और उसने फैले बैग्स के साथ कुछ और बैग्स रख दिए। उस लड़की की तरफ प्यार से देखते हुए पूछा....खुश....! उसने अपनी आँखों में आए आँसूओं को छुपाते हुए हाँ में सिर हिला दिया.... समझीं कि लड़के ने नहीं देखे, लेकिन उसने देख लिए थे, क्या हुआ.... उसने हँसते हुए लड़की के सामने अपनी बाँहें फैला दी.....और लड़की उसके सीने में अपना सिर गड़ाकर सिसकियाँ भर कर रोने लगी.....। वह कार्तिक की शाम थी.... दीपावली अब करीब थी और लड़की ने मन भर शॉपिंग की थी। लड़की समझ नहीं पाई कि वह क्यों रोई.... लड़का शायद जानता था कि वह क्यों रोई...?
टीवी पर ब्रूस अल्माइटी फिल्म आ रही थी। ब्रूस एक टीवी रिपोर्टर है और लगातार अपनी असफलता से दुखी है, उसे नौकरी से निकाल जा चुका है और वह निराश है, तभी उसके पेजर पर एक मैसेज आता है कि उसे यदि नौकरी की जरूरत है तो वह इस पते पर मिले....। वह उस जगह पहुँचता है, एक बड़ी सी बिल्डिंग में जहाँ कोई नहीं और कुछ भी नहीं होता है, वहाँ एक सज्जन सफाई करते हुए मिलते हैं। थोड़ी देर बाद... वे उसे बताते हैं कि वे गॉड है ब्रूस को विश्वास नहीं होता, वे उसे कुछ चमत्कार दिखाते हैं, फिर उसे विश्वास होता है।
गॉड उसे अपनी शक्तियाँ देते हैं और कहते हैं कि इनके उपयोग दूसरों की भलाई के लिए ही करना है। शक्तियाँ मिलते ही ब्रूस के सपनों को पंख लग जाते हैं और वह तमाम ऊलजुलूल हरकतें करने लगता है, लेकिन शक्तियाँ मिलते ही एकाएक उसे बहुत सारी आवाजें भी सुनाई देने लगती है। जब वह फिर से गॉड से मिलता है तो वह उन आवाजों का जिक्र करता है। गॉड बताते हैं कि वे सारी रिक्वेस्ट की आवाजें है। और यह पूरी दुनिया से नहीं बल्कि सिर्फ बफेलो स्टेट के ही लोग है। ब्रूस एक सिस्टम बनाता है, जिसके तहत उसे कम्प्यूटर पर सारी रिक्वेस्ट मिलती है। रिक्वेस्ट इतनी ज्यादा होती है कि ब्रूस के पास पढ़ने का धैर्य भी नहीं होता है, इसलिए वह सभी को यस कर देता है।
लड़की को पहली बार 15 साल पहले लड़के द्वारा कही गई बात का मतलब समझ में आता है। ईश्वर बहुत बेचारा है, क्योंकि उसके उपर कोई नहीं है, वह अपनी परेशानी किसी से शेयर नहीं कर सकता है। उसे एकाएक ईश्वर से सहानुभूति होने लगी....। लड़का पूरी तन्मयता से फिल्म देख रहा है और लड़की उसे देखते हुए सोच रही है कि क्या उसे याद है कि कभी उसने मुझसे कहा था कि तुम्हारा ईश्वर बेचारा है।

5 comments:

  1. vah ab bhi yahi kahta hai.

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  2. क्या बात है..फ़िल्म के कथ्य को बड़ी खूबसूरती से कहानी मे पिरोया है आपने

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  3. कहते है किसी का वर्तमान किसी का फ्लेश्बेक होता है ....अलमारी में रखी कई बाते उम्र ओर हालात के एक मोड़ पे अपना जुदा अर्थ लेकर सामने आती है ...यू इस तरह से हम हैरान होते है की क्यों पहले कहाँ छूट गए थे ...
    इश्वर तो वही है बरसो से अपनी गेलेक्सी में अकेला तन्हा ...ओवर लोड से परेशान

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  4. main samjh gai jeeju amita di ab bhi ishwar se kuch prashan pochna\e ko betab hain.... to..? to matlab ye ki aur thodi shopping ki jarorat hai. Hee. hee. Hee. Hee.

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  5. ख़ुदा एक ख़याल है , एक एहसास है जिसे हम सिर्फ रूह की गहराईयों से महसूस कर सकते हैं.वे और लोग होंगे जो ख़ुदा को मिट्टी के घरों में ढूंढते हैं,और उनकी ये तलाश तमाम उम्र जारी रहती है...अलबत्ता उन्हें उनकी तलाश के ऐवज़ में राम-कृष्ण,ईशा-मूसा या मोहम्मद ज़रूर मिल जाते हैं.उनकी पूरी अकीदत एक नाम के दायरे में क़ैद होकर रह जाती है. तुमने एक अच्छे ख़याल को छुआ और अंदर तक महसूस भी किया लेकिन उसे अफ़सानों की भूलभुलैया में ले जाकर छोड़ दिया.चलो इस बहाने एक ख़याल ने सांसें भरना तो सिख लिया.

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