Tuesday 15 September 2009

हिंदी दिवसः कसीदा और मर्सिया

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" href="http://www.chitthajagat.in/?claim=l9j35zexakju&ping=http://amitaneerav.blogspot.com/">चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" alt="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" src="http://www.chitthajagat.in/chavi/chitthajagatping.png" border=0>



हिंदी दिवस की बरसी मना ली, (यूँ बरसी का शाब्दिक अर्थ बरस से जुड़ता है, लेकिन हमारी परंपरा में इसक शब्द का उपयोग शुभ के लिए नहीं किया जाता है... और यहाँ इसका प्रयोग उसी प्रतीकात्मकता के साथ हुआ है।), कुछ ने हिंदी की प्रसार और लगातार उसकी अच्छी स्थिति को लेकर कसीदे पढ़े तो कुछ ने बदहाली के लिए मर्सिया पढ़ा.... कहीं सप्ताह तो कहीं पखवाड़े का आयोजन किया जा रहा है..... किसी ने दिन मना कर ही अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। इस पूरे समय में हिंदी को लेकर अखबारों में लेख और टीवी पर चर्चाएँ सुनी गई....किसी के अनुसार बाजारीकरण ने हिंदी के प्रसार-प्रचार में बड़ी भूमिका निभाई है तो कोई हिंदी के हिंग्लिश होने से खफ़ा है। कुल मिलाकर हर साल जो होता है, इस बार भी वही हुआ... फिर भी हिंदी की राष्ट्रभाषा के तौर पर क्या हैसियत है, इस पर सवाल उठाया जाना जरूरी है क्योंकि सवाल होंगे तो ही तो जवाब होंगे।

एक तरफ हिंदी को बाजार ने हाथोंहाथ लिया है.... इसलिए नहीं कि बाजार को इसकी वैज्ञानिकता से प्यार है या फिर हमारी राष्ट्रभाषा होने से आस्था थी, यह बाजार की मजबूरी है... उसे अपना माल ग्राहकों की भाषा में ही बेचना पड़ेगा, यह कोई हमारी भाषा से मुरव्व़त का मामला नहीं है।

हाँ मनोरंजन के माध्यमों में हिंदी की पकड़ ने जरूरी थोड़ी बहुत आशा जगाई है, लेकिन असल मामला है रोजगार पाने का.... जो भाषा रोजगार दिलाने में सक्षम है, बस वही जीवित रह पाएगी...इसमें हिंदी अंग्रेजी से बहुत पीछे नजर आती है, हिंदी की जरूरत है, लेकिन एक वैकल्पिक भाषा के तौर पर.... अंग्रेजी की जानकारी जरूरी है। अनुभव कहते हैं कि आप कुछ नहीं जानते और सिर्फ अंग्रेजी जानते हैं तो आपके सामने अवसरों का भंडार है, लेकिन यदि आप बहुत कुछ जानते हो और अंग्रेजी नहीं जानते हो तो आपका कुछ भी जानना बेकार है। हिंदी भाषी क्षेत्र में हिंदी के दैनिक अखबार में काम करते हुए भी लगभग हर दिन अंग्रेजी से भिड़ंत होती है, ट्रेनिंग के दौरान हर दिन हिंदी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद की मशक्कत यह साबित करती है कि मात्र हिंदी के ज्ञान से ही जीवन की नैया पार नहीं लगाई जा सकती है। इसलिए जरूरत इस बात है कि अब शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही कर दिया जाए.... क्योंकि अब मामला सम्प्रेषण से आगे जाकर जीवन-शैली, रहन-सहन और उससे भी उपर समाज की समता और विषमता तक पहुँच गया है, तभी तो मजदूर भी अपने बच्चे को हिंदी में नहीं पढ़ाना चाहता है, क्योंकि वह यह जानता है कि मात्र हिंदी पढ़कर वह बेहतर जिंदगी नहीं जी पाएगा। इसलिए अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा कम-अस-कम इस विषमता को कुछ तो कम किया जा सकेगा और फिर इसमें ही प्रतिभा का आकलन भी हो पाएगा, फिलहाल तो वो प्रतिभाशाली है जो अंग्रेजी बोल पाता है.... आप यकीन करें या ना करें.....!


1 comment:

  1. vichar kisi bhasha ke gulam nahi hain\lekin\apni bhasha main sub kuch kahna bhi aasan nahi hai.... \apni bhasha main gao-gungunao ,magar,dusari jaban ko bhi samajho,saraho\............dil bada ho to tamam anubhutian daman tham leti hain\khyaki,sari nadiyan samandar main viram leti hain......

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