Sunday 12 April 2009

कलम पर भारी जैनी का जूता…..

उस प्रेस कांफ्रेंस में दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंह ने गृहमंत्री पर जूता क्या फेंका देशभर के पत्रकार और कथित सभ्यतावादी लगे आलोचना करने....फिर टीवी चैनलों को तो एक बड़ा स्कूप मिल गया... लंबे समय से उन्हें खबरों की तलाश थी....जैनी ने तो चिदंबरम की तरफ एक ही जूता फेंका लेकिन टीवी पर तो इतने जूते पड़ते दिखाए गए कि बस....इसे पत्रकार के पेशे और उसके संयम की दुहाईयाँ भी दी जाने लगी...आखिरकार जरनैल सिंह मात्र एक पत्रकार ही तो है....इंसान नहीं...? तो उसे तो एक पैटर्न के अनुसार व्यवहार करना चाहिए ना.....! यह हंगामा उस समय नहीं हुआ जब जैदी ने बुश पर जूता फेंका था....शायद उसे दुसरे देश का मामला मान लिया गया था....लेकिन आज ये मामला हमारे देश का है।
इसे व्यवहार के तयशुदा मापदंडों के आधार पर तौलने की बजाय जैनी की मजबूरी के तौर पर देखा जाना चाहिए...एक पूरी की पूरी कौम की पीड़ा से उपजी बेबसी....और उस बेबसी का ये सात्विक विरोध....सोचिए जूते की जगह बंदूक भी हो सकती थी.....एक तरफ जहाँ जैदी का जूता एक देश की पीड़ा का प्रतीक है तो जैनी का जूता एक पूरी कौम की बेबसी का....जिन्हें एक पूरी कौम अपराधी मानती हो वे गवाहों के अभाव में निर्दोष सिद्ध हो जाए और पार्टी उन्हें टिकट भी दे दे तो फिर वह पीड़ित कौम क्या करे? जैनी के गुस्से को मजबूर गुस्से की सात्विक अभिव्यक्ति माना जाना चाहिए....औऱ फिर जो काम देश भर में हुए विरोध प्रदर्शन नहीं कर सका उसे एक जूते ने कर दिखाया.....अब हुआ ना जूता कलम से ज्यादा ताकतवर....जो काम जैनी के जूते ने किया क्या वह काम उसकी कलम कर सकी.....? हाँ इस कैटेगरी में राजबल और नवीन जिंदल मामले को नहीं लिया जा सकता है....

3 comments:

  1. achchha lekh likha hai aapne ...baat mein dum hai

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  2. haan yahee kadwaa sach hai jo shaayad kuchh log sunna nahin chaahte, magar mera virodh is baat ko lekar hai ki aakhir pradhaanmantree jo khud sikhh hain unhein koi kyun kuchh nahin keh raha hai.

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  3. to aap kab kalam chhod kar juta utha rahi hain.

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